जानकारी
ज्योतिरादित्य माधवराव सिंधिया भारत सरकार की पंद्रहवीं लोकसभा के मंत्रिमंडल में वाणिज्य एवं उद्योग राज्यमंत्री रह चुके हैं। ये लोकसभा की मध्य प्रदेश स्थित गुना संसदीय सीट का प्रतिनिधित्व करते थे। ज्योतिरादित्य सिंधिया मनमोहन सिंह के सरकार में केन्द्रीय मंत्री रहे हैं यह गुना शहर से कांग्रेस के विजयी उम्मीदवार रहे हॆं। विकिपीडिया
जन्म: 1 जनवरी 1971 (आयु 49 वर्ष), मुम्बई
राष्ट्रीयता: भारतीय
पति/पत्नी: श्रीमती प्रियदर्शिनी राजे सिंधिया (विवा. 1994)
शिक्षा: स्टैनफोर्ड ग्रेजुएट स्कूल ऑफ बिजनस (2001), ज़्यादा
बच्चे: महानारयमन सिंधिया, अनन्या सिंधिया, ज़्यादा
इनके पिता स्व.श्री माधवराव सिन्धिया जी भी गुना से कांग्रेस के विजयी उम्मीदवार रहे थे। ज्योतिरादित्य सिंधिया ...
जीवन संगी: प्रियदर्शनी राजे सिंधिया
राजनीतिक इतिहास
मध्यप्रदेश में कमलनाथ सरकार को बड़ा झटका लगा है। ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया है। सिंधिया जल्द ही भाजपा में शामिल हो सकते हैं। सिंधिया के साथ छह राज्य मंत्री सहित 19 कांग्रेसी विधायकों ने भी विधानसभा से इस्तीफा दे दिया है।
ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी चाहती थीं कि उनका पूरा परिवार भाजपा में रहे। जिवाजी राव सिंधिया और विजया राजे सिंधिया कीं पांच संतानों में से माधवराव और उनके पुत्र ज्योतिरादित्य के सिवा सभी भाजपा में ही रहे। हम आपको बता रहे हैं कि कौन हैं ज्योतिरादित्य और क्या है उनका राजनीतिक इतिहास?
ज्योतिरादित्य की दादी ने कांग्रेस से की थी शुरुआत
ज्योतिरादित्य की दादी और ग्वालियर की राजमाता विजयराजे सिंधिया ने अपनी राजनीति कि शुरुआत कांग्रेस से की थी। 1957 में वो गुना से लोकसभा सीट जीतकर संसद पहुंची थीं। दस साल कांग्रेस में रहने के बाद 1967 में वो जनसंघ में चली गईं। विजयराजे की वजह से ही उनके क्षेत्र में जनसंघ मजबूत हुआ।
1971 में जब इंदिरा गांधी की पूरे देश में लहर थी तब भी जनसंघ यहां से तीन सीट जीतने में कामयाब हो गया। विजयराजे सिंधिया भिंड से, अटल बिहारी वाजपेयी ग्वालियर से और ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया गुना से सांसद बने।
1971 में जब इंदिरा गांधी की पूरे देश में लहर थी तब भी जनसंघ यहां से तीन सीट जीतने में कामयाब हो गया। विजयराजे सिंधिया भिंड से, अटल बिहारी वाजपेयी ग्वालियर से और ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधवराव सिंधिया गुना से सांसद बने।
पिता जनसंघ छोड़ कांग्रेस में हुए थे शामिल
ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधव राव सिंधिया सिर्फ 26 साल की उम्र में ही सांसद बन गए थे। वो भी जनसंघ में ही थे लेकिन 1977 में आपातकाल के बाद उनके रास्ते जनसंघ और अपनी मां विजयराजे सिंधिया से अलग हो गए। 1980 में ज्योतिरादित्य के पिता ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा और वो केंद्रीय मंत्री भी बने। 2001 में एक विमान हादसे में उनकी मौत हो गई थी।दोनों बुआओं की राजनीति में एंट्री
विजयराजे सिंधिया की बेटी और ज्योतिरादित्य की दोनों बुआ वसुंधरा राजे सिंधिया और यशोधरा राजे सिंधिया ने भी राजनीति में एंट्री कर दी। 1984 में वसुंधरा राजे भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल हो गईं। वह राजस्थान की मुख्यमंत्री भी रह चुकी हैं। राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया के बेटे दुष्यंत भी भाजपा में ही हैं। वह राजस्थान की झालवाड़ सीट से सांसद हैं।
वसुंधरा राजे की बहन यशोधरा 1977 में अमेरिका चली गईं। 1994 में जब यशोधरा भारत लौटीं तो उन्होंने मां की इच्छा के मुताबिक, भाजपा जॉइन की और 1998 में भाजपा के ही टिकट पर चुनाव लड़ा। पांच बार विधायक रह चुकीं यशोधरा राजे शिवराज सिंह चौहान की सरकार में मंत्री भी रह चुकी हैं।
2002 में पहली बार बने सांसद
2001 में पिता की मौत के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस में पिता की जगह ली। 2002 में जब गुना सीट पर उपचुनाव हुए तो ज्योतिरादित्य सिंधिया सांसद चुने गए। पहली जीत के बाद से 2019 तक ज्योतिरादित्य सिंधिया कभी चुनाव नहीं हारे। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में कभी उनके ही सहयोगी रहे कृष्ण पाल सिंह यादव ने उन्हें हरा दिया।इस तरह शुरू हुई संधिया-कमलनाथ की तकरार
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने प्रदेश में सरकार तो बना ली लेकिन काफी कोशिशों के बावजूद ज्योतिरादित्य सिंधिया सीएम नहीं बन सके। पार्टी ने कमलनाथ को प्रदेश की कमान सौंप दी। यहीं से दोनों नेताओं के बीत तकरार शुरू हो गई। विधानसभा के छह महीने बाद ही लोकसभा चुनाव में मिली हार सिंधिया के लिए दूसरा बड़ा झटका साबित हुई।लोकसभा चुनाव में हार के बाद से ही बार-बार मांग करने के बावजूद सिंधिया को मध्यप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष का पद नहीं मिला। उसके बाद राज्यसभा भेजे जाने को लेकर कमलनाथ और सिंधिया के बीच तकरार सामने आई।
सिंधिया ने कमलनाथ सरकार के खिलाफ सड़कों पर उतरने की धमकी भी दी थी। सिंधिया ने नवंबर 2019 में कांग्रेस पार्टी के सभी पदों को छोड़कर दबाव बनाने की कोशिश की लेकिन उनकी यह कोशिश भी नाकाम रही।
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