खामोश हवेली का रहस्य

संपादकीय राजेन्द्र कुमार

आलेख- *रामप्रकाश अहिरवार ASI* की कलम से

खामोश हवेली का रहस्य
शहर के कोलाहल से दूर, हरी-भरी पहाड़ियों के बीच एक पुरानी हवेली थी। उसे 'खामोश हवेली' के नाम से जाना जाता था क्योंकि बरसों से उसमें कोई नहीं रहता था और उसके बारे में कई रहस्यमयी कहानियाँ प्रचलित थीं। लोग कहते थे कि रात में वहाँ अजीबोगरीब आवाज़ें आती हैं,और कभी-कभी हवेली की खिड़कियों से एक धुंधली रोशनी चमकती दिखाई देती है।
एक दिन,विक्रम नाम का एक युवा लेखक,जो रहस्यों और भूतों की कहानियों का शौकीन था, उस हवेली के पास से गुज़र रहा था। उसके मन में जिज्ञासा जागी और उसने फैसला किया कि वह हवेली के अंदर जाकर उसका रहस्य पता लगाएगा।
शाम ढल चुकी थी और सूरज की आखिरी किरणें पहाड़ियों के पीछे छिप रही थीं। विक्रम ने हिम्मत करके हवेली के भारी-भरकम जंग लगे गेट को धक्का दिया। एक चरमराहट की आवाज़ के साथ गेट खुल गया। अंदर का माहौल और भी डरावना था। हवा में एक अजीब सी गंध थी,जैसे पुरानी लकड़ी और सीलन की मिली-जुली गंध।
वह धीरे-धीरे अंदर गया। कमरे धूल और जालों से भरे थे। टूटे हुए फर्नीचर बिखरे पड़े थे और दीवारों पर से पेंट उखड़ रहा था। जैसे ही वह हॉल में पहुँचा,उसे एक हल्की सी आवाज़ सुनाई दी, जैसे कोई फुसफुसा रहा हो। विक्रम का दिल तेज़ी से धड़कने लगा,लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी।
वह आवाज़ का पीछा करते हुए एक बड़े से कमरे में पहुँचा। वहाँ एक पुराना पियानो रखा था, जिसके ऊपर धूल की मोटी परत जमी थी। लेकिन हैरानी की बात यह थी कि उस पियानो से ही वह फुसफुसाहट आ रही थी। विक्रम ने ध्यान से देखा। पियानो की कुंजियाँ अपने आप हल्के से हिल रही थीं,जैसे कोई अदृश्य हाथ उन्हें बजाने की कोशिश कर रहा हो।
अचानक,एक तेज़ हवा का झोंका आया और कमरे की एक टूटी खिड़की से अंदर घुस गया। पुराने पर्दे उड़ने लगे और विक्रम को लगा जैसे किसी ने उसके कंधे पर हाथ रखा हो। वह तेज़ी से मुड़ा, लेकिन वहाँ कोई नहीं था।
तभी उसकी नज़र पियानो के पास ज़मीन पर पड़े एक पुराने डायरी पर पड़ी। उसने डायरी उठाई। वह डायरी उस हवेली के आखिरी मालिक की थी, जो कई साल पहले रहस्यमय तरीके से गायब हो गया था। डायरी के पन्ने पीले पड़ चुके थे और उनमें से एक अजीब सी सुगंध आ रही थी।
विक्रम ने डायरी खोलना शुरू किया। पन्ने पलटते हुए वह एक जगह रुका जहाँ लिखा था: "मेरी आत्मा इस संगीत में कैद है। जो इसे सुन सकेगा, वही मुझे मुक्ति दिला पाएगा।"
विक्रम को कुछ समझ नहीं आया। उसने पियानो की कुंजियों को छुआ। जैसे ही उसने एक धुन बजाई, हवा में एक मधुर संगीत गूँजने लगा। यह वही धुन थी जो डायरी में लिखे अंतिम पृष्ठ पर नोट की गई थी।
संगीत जैसे-जैसे आगे बढ़ा, कमरे में एक अजीब सी रोशनी फैलने लगी। दीवारों पर बनी पुरानी तस्वीरें हिलने लगीं और धूल के गुबार में से एक धुंधली आकृति उभरने लगी। वह आकृति एक वृद्ध व्यक्ति की थी, जिसकी आँखें शांत और तृप्त दिख रही थीं।
उस आकृति ने विक्रम की ओर देखा और एक हल्की मुस्कान दी। फिर धीरे-धीरे वह आकृति और रोशनी दोनों हवा में विलीन हो गए। पियानो से आवाज़ आनी बंद हो गई और कमरा फिर से खामोश हो गया।
विक्रम समझ गया कि उसने उस आत्मा को मुक्ति दिला दी है जो बरसों से उस हवेली में भटक रही थी। उस दिन के बाद, खामोश हवेली में कोई अजीब आवाज़ नहीं आई,और न ही कोई रोशनी दिखी। हवेली का रहस्य हमेशा के लिए सुलझ गया था,और विक्रम को अपनी कहानी के लिए एक अद्भुत अंत मिल गया था।

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